भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे / अकील नोमानी
Kavita Kosh से
जो कहता था हमारा सरफिरा दिल, हम भी कहते थे
कभी तनहाइयों को तेरी महफ़िल, हम भी कहते थे
हमें भी तजरिबा है कुफ्र की दुनिया में रहने का
बुतों के सामने अपने मसाइल हम भी कहते थे
यहाँ इक भीड़ अंजाने में दिन कहती थी रातों को
उसी इक भीड़ में हम भी थे शामिल, हम भी कहते थे