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झूला / कालीकान्त झा ‘बूच’

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झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा
डूबि डूबि श्यामल नीरद मे-
चान उगै छथि आधा
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा।

कालिन्दी कूलक कदंब सँ-
रेशम डोरी लाधा
झूलि रहल मणि खचित मनोहर
झूला एक अबाधा
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा।

कंकण ताल खनन खन बँसुरी-
बर कमाल, स्वर साधा
खसली श्याम क कोर उछलिकऽ
सम्हरथि सम्हरथि जा जा,
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा।

देखि देखि नाँचल "बुचबा"
ताथैया-धिक्-धिक्-धा धा
विरह विकल मन विहग लेल ई-
याद भेल अछि व्याधा।
झुलबथि कान्ह, झुलै छथि राधा...