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टप्पे / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अमराई महक उठी
हिय की गहराई में
पहचानें लहक उठीं!
तितली के पंख खुले
यादों के देवल के
उढ़के दो द्वार खुले
नयी दिल्ली, जून, 1980