भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टोकनी / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
यकायक पता चला कि टोकनी नहीं है
पहले होती थी
जिसमें कई दुख और
हरी-भरी सब्ज़ियाँ रखा करते थे
अब नहीं है...
दुख रखने की जगहें
धीरे-धीरे कम हो रही हैं ।