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डर / कुमार मुकुल

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डर अगर कहीं घर करता है

तो मरता है कुछ

तुरत-फुरत मरे या देर से मरे

भीतर मरे या दूर सड़क पर

व्यवस्था के अंधेर से मरे

हरियाली मरे या रास्ता मरे

या आदमी से आदमियत का वास्ता मरे

नज़र मरे या उसका पानी मरे

या पानी के भीतर की रवानी मरे

पर मरता है कुछ


आत्महत्या कर मरे या समाधि में मरे

या किसी चौंक पर

शहादत की उपाधि ले मरे

अकेला मरे या समूह में मरे

या दाँत और जीभ के दबाव में

कटु सच की तरह हमारे मुँह में मरे

पर मरता है

इसीलिए दोस्तों

वर्मा जी की बातों में मत पड़ो

डरो मत

चाहे हो मौत ही

उससे भी लड़ो।