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डैनियाँ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
एखनी तेॅ छौड़वा खेलबे करै रहै,
उछली कुदी केॅ भुंजा फाँकै रहै,
सोनियाँ बापें आभ्नैं रहै अंगा,
पीन्हीं केॅ झलकै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
चौबटिया पर आखर गोबर केॅ चौका,
फूलसिनूर आरो बड़कागो लौका,
छौड़ाँ नाँघी अयलै बिहानैंह,
एखनी बड़का-बड़का फोका,
हाय-हाय-तड़पै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
दॅर दुनियाँ में एक्के गो रहै,
आबे केनाँ दिबस गमैबै?
जोगेलिरासी नाशले हमरा,
आबे के कहतै खाय लेॅ दे हमरा?
हिरदै सालै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
हे सोनियाँ माय कानला सें की हो थौं?
भगवान मानथौं फेरू हो थौं।
ओझा केॅ मगाबो धोंछी केॅ नचाबोॅ
आगू दिनों केॅ रास्ता बनाबोॅ
ऐहे करबै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
भागी केॅ जैयती कहाँ बिगोड़ी,
ओझाँ देथैं भंडा फोड़ी,
सूपें बोढ़नी करभैं एकट्ठा।
तबेॅ होतै कलेजा ठंढा
खतमें करबै गे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।
बोंगन ओझाँ हाथ चलैल कै,
कटोरा नचैल कै, नाम कहल कै
बुचना मैयाँ बोलै केॅ कहतोॅ?
सुचनाँ लाठी चलाबैगे।
डैनियाँ खैलकै गे, मुदैनियाँ खैलकै गे।

-रचना-दुर्गापूजा/1955 मुंगेर, पुन‘ समय सुरभि अनंत, अंक-25 वर्ष.....