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तक़दीरें / शेखर सिंह मंगलम
Kavita Kosh से
हद-ए-नज़र जिन की ख़बरों के इदारे हैं
उनकी भली तक़दीरें लफंगों के सहारे हैं
सत्ता की रेखायें पढ़ने वाले मीडिया पंडित
ग़रीब कहे को गुहाँजनी नेता कहे तो नारे हैं
पक्ष-विपक्ष का एक लक्ष्य बारी-बारी लूटेंगे
चुनाव चोरों में करना, बुलंद इनके सितारे हैं
शिलान्यासों-उद्घाटनों मध्य विकास जरता
जैसे उइगर मुसलमानों को चाइना ने मारे हैं
एक नीति राजनीति की उधेड़-बुन जीत की
मीठी दरिया ऊपर से, अंदर बिल्कुल खारे हैं
पूंजीवादी व्यवस्था में किसान मुद्दा केवल
मुद्दों के पीछे अडानी, अम्बानी और सारे हैं
प्रादेशिक चुनाव में का हाल बा का स्लोगन
गीत बँट गया तो समझो स्वार्थों के इशारे हैं।