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तब से / तो हू
Kavita Kosh से
तब से मुझ में जल रही है ग्रीष्म की आग
चमक रहा है सत्य का सूर्य
मेरी आत्मा है पत्तों और फूलों की बाड़ी
इतनी ख़ुशबू है-- इतनी चहक चिड़ियों की
मैंने जोड़ दिया है सबके दिल से अपना दिल
अन्तिम छोर तक बहने दिया है अपना प्यार
जो भी सहते हैं दुख उनके साथ है आत्मा मेरी
तेज़ से तेज़ हो ताकि जीवन की शक्ति
अब हज़ारों घरों में आंगन है मेरा
हज़ारों-हज़ार हताश लोगों का छोटा भाई हूँ मैं
और लाखों लोगों का बड़ा भाई
- बिना अन्न, बिना वस्त्र, बिना घर-बार के
- घूमता तब से...