तमाशा / दिनेश देवघरिया
आइए मेहरबानो, कदरदानो !
श्रीमतियो, श्रीमानो !
छोटों को प्यार
बड़ों को नमस्कार
हिंदु को राम-राम
मुसल्मान को सलाम।
जय काली कलकत्तेवाली
बजाओ ताली।
क्या सोच रहे हैं?
मैं कोई तमाशा दिखा रहा हूँ-
बंदर, भालू का नांच
या कोई बड़ा-सा सांप
या कोई जादू दिखा रहा हूँ,
अठन्नी को सिक्का
या सिक्के को अठन्नी तो नहीं बना रहा हूँ।
मेहरबान!
आपकी अक्कल पर मैं हूँ हैरान
देश के नेता हम सबको
बंदर-भालू की तरह नचा रहे हैं
आप फिर भी
तमाशा देखना चाह रहे हैं।
कोई टोपी पहनाता है
कोई रोटी दिखलाता है
और तुम सबको
अपनी उँगलियों पर नचाता है।
तुम्हें तुमसे ही लड़वाता है
तुमसे ही
तुम्हारे घरों में आग लगवाता है
और अपनी रोटी सेंक जाता है।
और तुम्हें सिर्फ़
तमाशा देखना आता है।
जय काली कलकत्तेवाली
बजाओ ताली।
भ्रष्टाचार का सांप
चारो तरफ़ से फुँकार रहा है
आपको फिर भी
सांप देखने का खयाल आ रहा है।
पहले सांप को दूध पिलाते हो
फिर उसे कुचलने के लिए
धरने पर बैठ जाते हो।
दुनिया को
इतना शानदार तमाशा दिखाते हो।
फिर भी मुझसे तमाशा देखना चाहते हो।
जय काली कलकत्तेवाली
बजाओ ताली।
500 रुपये में जादू तो
वह डॉक्टर दिखाता है
पेट में लड़का है या लड़की
सबकुछ बताता है।
जन्म लेने से पहले
लड़कियाँ पेट से गायब हो रही हैं
आपकी आँखें फिर भी
जादू देखने के लिए मचल रही हैं।
जय काली कलकत्तेवाली
अरे ! कब तक बजाओगे ताली।
कब तक
अपने हाल, समाज की दशा
और देश की दुर्दशा के लिए
दूसरों पर दोष मढ़ते रहोगे
तुम केवल तमाशबीन हो
क्या खुद से नहीं कहोगे।
तमाशा देखना बंद करो
और अपनी सोई गैरत को जगाओ।
और अगर बात समझ आ गई हो
तो ज़ोर से ताली बजाओ।