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तितली / एस. मनोज
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तितली रानी तितली रानी
करती हो कितनी मनमानी
कभी इधर तो कभी उधर फिर
फूलों पर ही आ जाती हो
अपने मनभावन रंगों से
फूलों को सहला जाती हो
इस बगिया के, उस बगिया के
फूलों से ही रस पाती हो
दिन भर में क्या-क्या खाती हो
फूलों पर तुम क्या गाती हो
तेरी अद्भुत सभी कहानी
तितली रानी तितली रानी