भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारा प्यार / रंजना जायसवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब
चाँद-सितारों की
तिरछी पड़ती
रोशनी में
दिप-दिप करता था
तुम्हारा चेहरा...

शरीर में
आकुल दौड़ती थी
नदी...

आवाज़ में
हँसता था आकाश
और हँसी
डूबी रहती थी
फूलों में

तब
धूप की फुहारों से
भीगे शरद के दिनों-सा
होता था
तुम्हारा प्यार...।