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तोते जी / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
मजे तुम्हारे तोते जी।
नीले अंबर में फैला कर
हरे पंख तुम उड़ते हो
दाएँ बाएँ ऊपर नीचे
जब चाहो तब मुड़ते हो।
मस्ती में भरकर खाते हो
खूब हवा में गोते जी।
कुतर डालते हो बगिया के
कच्चे पक्के फल सारे
रखवाली करते पेड़ों की
बागवान तुम से हारे।
डाल चोंच से बियाबान में
बीज, पेड़ तुम बोते जी।