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दिनुआ / राहुल शिवाय
Kavita Kosh से
दिनुआ दीनानाथ हो गया
कोरे नारों से
गले लगा,
सबको समझाया
अपना हूँ सबका
बहुत दुखों को
झेल चुका है
अपना यह तबका
लदा हुआ था
गलियों में कल
मोटे हारों से
टूटी चप्पल
पहन गली में
वोट माँगता था
बाबू, भैया,
मैया कह जो
सगा मानता था
आज वही है
हाथ हिलाता
मोटरकारों से
निष्ठा अब भी
जुड़ी हुई है
दिनुआ अपना है
चाहे धूमिल हुआ
सभी के
मन का सपना है
ऐसे में क्या
खेल नहीं हो
निज अधिकारों से ?