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दुपहरी / कविता वाचक्नवी

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दुपहरी


हमने
कागज़-सी चिट्टी
कुरकुरी दुपहरी
भरकर दो नामों से
छिपकर
हँसकर
एक बेंच पर
चिपका दी

मरुगंधों से
लिपट
स्वेद का
सौंधापन
फड़फड़ा रहा है।