भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुपारौ / भंवर भादाणी
Kavita Kosh से
लाम्बी भुजावां
फैलायां
आंमी सांमी
सूरज अर उफणती रेत,
किरण्यां रै पगलिया
उतरतो
गरमावतो
आपरै ही मिजाज में
अपमत्तो
ओ सूरज
ओ मचंग दुपारौ !