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दूब सिहरी / केदारनाथ अग्रवाल
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दूब सिहरी
और गिर ही गया मोती
- स्वप्न जैसा ।
इस हवा को सह न पाया,
दूब की सिहरन लिए मैं
- लौट आया ।