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दूसरा शख़्स /सादी युसुफ़

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»  दूसरा शख़्स


... जाड़ों में एक रेस्तरां के भीतर, मैने उसे खांसते हुए सुना
मैंने देखा उसे रूमाल से हाथ पोंछते हुए
और अपनी आंखों की गहराई में से वह एक दबी हुई हँसी हंसा।
मैंने उसे पहली बार मुझे गौर से देखता हुआ पाया,
मैं एक शब्द भी नहीं सुन पाया जबकि वह मेरा मज़ाक उड़ा रहा था,
न जरा सी हरकत ही हुई उनींदी खामोशी में।
जाड़े के रेस्तरां की खिड़कियाँ गीली थीं।

फिर अचानक वह उठकर चल दिया
लिपटा हुआ उड़े रंग वाले अपने कोट में ...