भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दृष्टि / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
जीवन के कठिन संघर्ष में
हारो हुओ!
हर क़दम
दुर्भाग्य के मारो हुओ!
असहाय बन
रोओ नहीं,
गहरा ऍंधेरा है,
चेतना खोओ नहीं!
पराजय को
विजय की सूचिका समझो,
ऍंधेरे को
सूरज के उदय की भूमिका समझो!
विश्वास का यह बाँध
फूटे नहीं!
नये युग का सपन यह
टूटे नहीं!
भावना की डोर यह
छूटे नहीं!