देशी रजवाड़े / महेन्द्र भटनागर
:
प्रतिगामी, जनता के दुश्मन
जो जन-बल के सदा विरोधी,
जिनने जनता के शव पर चढ़
किया अभी तक चैपट शासन !
जन घोर उपेक्षा, लगा दिया
यहाँ ज़मीदारों का जमघट
अंग्रेज़ों को शीश झुकाया
औ’ भारत का अपमान किया !
राजा और नवाब विलासी
महलों में सुख के भर साधन,
फ़ौज़ पुलिस के गुर्गों से जो
लगवाते जन-जन को फाँसी !
ख़ुद निश्चिन्त हमेशा रहते
उठता रहता है कहीं धुआँ,
जलते गाँव, उजड़ जाते जन
अकाल, बीमारी को सहते !
करते रहते जो मनमानी,
अपने औ’ पुरखों के फोटो
औ’ स्टेच्यू पथ में लगवाते
पर, न लगी है झाँसी की रानी !
एक नवाब बनाता मसज़िद
आर्य-समाज न बनने देगा,
धर्मों की संकीर्णता बढ़ी,
छीने हैं हक़, यह कैसी ज़िद !
यह भारत जब आज़ाद हुआ
तब इनने भी यह ही चाहा;
हम आज़ाद बनें, पर न पता
अंग्रेज़ मरा, बरबाद हुआ !
पनपा इनकी सीमा में बढ़
हिन्दू, मुस्लिम, हरिजन में घुस
जाँति-पाँति का भेद भाव रे
ये प्रतिक्रियावादी दृढ़ गढ़ !
ये हिजड़े कायर लड़ न सके !
जब अग्रेंज़ी राज बना था,
मुट्ठी भर ‘गोरे’ बढ़ते थे,
ये कर न सके कुछ, सिर्फ़ झुके !
चलती आयी अब तक सत्ता
संगीनों के, गोलों के बल,
अब न टिकेगा ताज कहीं भी
जाग उठा हर पत्ता-पत्ता !
‘शेरे कश्मीर’ बना हर जन
ट्रावनकोर, हैदराबाद कि
भोपाल व कश्मीर शत्रु हैं
अतएव करो जन-आन्दोलन !
फिर भारत में जनतंत्र जगे !
जनता का राज बने ऐसा,
हिल न सके जब आये झंझा,
ये ताज पटक कर शीघ्र भगें !