दोस्त / संगीता शर्मा अधिकारी
कुछ दोस्त हमेशा संग रहते
महफ़िल में तन्हाई में
ख़ुशी में रुसवाई में
मिलन में जुदाई में ।
कुछ दोस्त हमेशा याद आते
जिंदगी के हर लम्हें में
चाय की चुस्कियों में
नूडल्स के फॉर्क में
स्कूल के आख़री बैंच में
असेंबली की डयूटी में ।
कुछ दोस्त कभी न भूल पाते
शॉपिंग के बैग्स में
बातों के चट्टों में
गोलगप्पों के पानी में
कॉलेज की मदमस्त जवानी में।
कुछ दोस्त हमेशा मुस्कुराते
मन भर ऊर्जा देते जाते
ज़िंदगी के थपेड़ों में भी
ठंडी स्याह रातों में
मुंह से गर्म सांसे फेंकते
हाथों में हाथ लिए
अपने होने का एहसास कराते
हमेशा जज़्ब रहते सीने में
एक सुखद याद बनकर ।
कुछ दोस्त हमेशा याद रहते
बहुत चुभते सीने में नासूर से
तो कुछ अचानक जगा देते सपनों से
कंपकंपाते हाथों को कसकर थामे
रोती हुई आंखों से आंसू पोंछते
लड़खड़ाने लगती ज़बान
कहते हुए बहुत सारा अनकहा
जो कहने के लिए
न जाने कब से सोचते रहे
जो पहले तू और पहले तू ने
निकाल दिया ज़िंदगी का
कितना वक्त यूंही ज़ाया
आज फ़िर एक बार
कुछ दोस्तों की उंगलियों के स्पर्श ने
आंखों से बहते हुए आंसुओं को
भर लिया है अपनी अंजुरी में
और गाल पर देते हुए प्यार भरा बोसा
जगा दिया है फिर से मुझे नींद से
दोस्त सपनों में भी
अचानक कितना कुछ दे जाते हैं
बिना किसी चाह के
उम्र भर तक जीने का सुखद एहसास।
आज भी वैसा ही सपना फ़िर बुना
आज फ़िर टूटा बहुत कुछ भीतर का
आज फिर एक नींद से जाग उठी
आज फ़िर भीतर एक ख़ुशी जगी
आज फिर यादों की गठरी से
कई दोस्त पुराने निकल पड़े
हाथों में हाथों को थामें
हम दूर भले पर साथ खड़े
है पास नहीं तो क्या ग़म है
कुछ दोस्त आज भी ख़ास बड़े
हम दूर भले पर साथ खड़े
लेकर हाथों में हाथ खड़े।