भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
सूरज से है आती धूप,
धरती को दमकाती धूप।
गरमी में न सुहाती धूप,
पर जाड़े में भाति धूप।
[रचना: 16 मई 1996]