भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नज़्म / हरकीरत हकीर
Kavita Kosh से
पता है
मैं ख़त नहीं हूँ
ख़त होती तो कोई पढता
कोई सहेज कर रखता …
मैं तो नज़्म हूँ
जिसे हर कोई पढता तो है
पर कोई सहेजता नहीं ….