नथुनिया फुआ / आरसी चौहान
ठेठ भोजपुरी की बुनावट में
सम्वाद करता
घड़रोज की तरह कूदता
पूरी पृथ्वी को मँच बना
गोंडऊ नाच का नायक --
“नथुनिया फुआ”
कब लरझू भाई से
नथुनिया फुआ बना
हमें भी मालूम नहीं भाई
हाँ, वह अपने अकाट्य तर्कों के
चाकू से चीड़-फाड़कर
कब उतरा हमारे मन में
हुडके के थाप और
भभकती ढिबरी की लय-ताल पर
कि पूछो मत रे भाई
उसने नहीं छोड़ा अपने गीतों में
किसी सेठ-साहूकार
राजा-परजा का काला अध्याय
जो डूबे रहे माँस के बाज़ार में आकण्ठ
और ओढ़े रहे आडम्बर का
झक्क सफ़ेद लिबास
माना कि उसने नहीं दी प्रस्तुति
थियेटर में कभी
न रहा कभी पुरस्कारों की
फेहरिस्त में शामिल
चाहता तो जुगाड़ लगाकर
बिता सकता था
बाल बच्चों सहित
राजप्रसादों में अपनी ज़िन्दगी के
आख़िरी दिन
पर ठहरा वह निपट गँवार
गँवार नहीं तो और क्या कहूँ उसको
लेकिन वाह रे नथुनिया फुआ
जब तक रहे तुम जीवित
कभी झुके नहीं हुक्मरानों के आगे
और भरते रहे साँस
गोंडऊ नाच के फेफडों में अनवरत
जबकि…..
आज तुम्हारे देखे नाच के कई दर्शक
ऊँचे ओहदे पर पहुँचने के बाद झुका लेते हैं सिर
और हो
जाते शर्मसार...।