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नयकी सदी / मुनेश्वर ‘शमन’
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थिर जल कंकरी के फेंकय।
मौन-मुग्ध फिन लहर के देखय।।
कइसन-केतना उथल-पुथल हे।
बेबस मछली हाय विकल हे।
हलचल के टूक असर के हेरय।।
घूरा सुलगल गाँव-सहर में।
धुइयाँ पसरल हे घर-घर में।
छलिया हाथ अलाव में सेंकय।।
टेढ़-मेढ़ अब जीवन के गति।
छल-परपंचे बनल नियति-मति।
अजब चाल हइ अदमी रेंगय।।
बड़ प्यासल जिनगी के नदी हे।
तातल-लहकल नयकी सदी हे।
लोग अपन अस्मिता के मेटय।।