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नवोन्मेष / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
खण्डित पराजित
ज़िन्दगी ओ !
सिर उठाओ।
आ गया हूँ मैं
तुम्हारी जय सदृश
सार्थक सहज विश्वास का
हिमवान !
अनास्था से भरी
नैराश्य-तम खोयी
थकी हत-भाग सूनी
ज़िन्दगी ओ !
सिर उठाओ,
और देखो
द्वार दस्तक दे रहा हूँ मैं
तुम्हारे भाग्य-बल का
जगमगाता सूर्य तेजोवान !
ज़िन्दगी
इस तरह
टूटेगी नहीं !
ज़िन्दगी
इस तरह
बिखरेगी नहीं !