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नव विहान / हरिवंशराय बच्चन
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नयन बनें नवीन ज्योति के निलय,
नवल प्रकाश पुंज से जगे हृदय,
नवीन तेज बुद्धि को करे अभय,
सुदीर्घ देश की निशा समाप्त हो।
जगह-जगह उड़े निशान देश का,
फ़रक ज़बान और वेश का,
बसेक धर्म हो प्रजा अशेष का,
स्वराष्ट्र-भक्ति व्यक्ति-व्यक्ति व्याप्त हो।
कि जो स्वदेश के चतुर सुजान हैं,
कि जो स्वदेश के पुरुष प्रधान हैं,
कि जो स्वदेश के निगाहबान हैं,
उन्हें अचूक दिव्य दृष्टि प्राप्त हो।