भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नव विहान / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नयन बनें नवीन ज्योति के निलय,
नवल प्रकाश पुंज से जगे हृदय,
नवीन तेज बुद्धि को करे अभय,
सुदीर्घ देश की निशा समाप्त हो।

जगह-जगह उड़े निशान देश का,
फ़रक ज़बान और वेश का,
बसेक धर्म हो प्रजा अशेष का,
स्वराष्ट्र-भक्ति व्यक्ति-व्यक्ति व्याप्त हो।

कि जो स्वदेश के चतुर सुजान हैं,
कि जो स्वदेश के पुरुष प्रधान हैं,
कि जो स्वदेश के निगाहबान हैं,
उन्हें अचूक दिव्य दृष्टि प्राप्त हो।