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नागरी चांदरी / कुमार मुकुल
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नगर की छोटी-बड़ी इमारतों में जल रही है रोशनी
जो अपने चारों ओर फैले अंधकार में
घुल रही है लगातार
इस अंधेरे को मैं देख रहा हूँ
जिसमें विलीन होने को बेचैन हैं
रोशनी की असंख्य नदियाँ
यह रोशनी है या विचारों का कोढ़
जो खुजाते तो देती है सुख
पर हमारी रीढ़ गलती जाती है
और एक दिन आता है जब हम ख़ुद को
कुत्तों और गिद्धों की प्रतीक्षा करते पाते हैं।