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नारी किश्ती / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
नारी और किश्ती में
कितनी समानता है
दोनों जूझती है लहरों से
दूसरों को किनारे पहुंचाने के लिए।
किनारे पर पहुंच कर
फिर से लौटना होता है
दूसरे किनारे पर
महज
दूसरों के सुख के लिए।
किनारों के बीच
संघर्ष कितना जटिल है
यह जानने की कोशिश
मर्द कभी नहीं करते
मगर
संघर्ष करने वाले
संघर्ष से कभी नहीं डरते।
नारी तुम एक किश्ती हो
सचमुच एक हस्ती हो।
तुम्हारे पास
देने को बहुत कुछ है
ढेर सारा प्यार
जैसे लबालब भरा हो तलाब
जिस मे तुम तैरती रहती हो
किश्ती की तरह।