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निधड़क / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
देख्योड़ा करसां नै
निसंक सूता
गैरी नींद में
खेतां रै आरलै सारलै
धोरां पर
बठै ही करै
लोट पळोटिया
गरमी स्यूं आकळ बाकळ हुयोड़ा
ठंडी कंवली रेत पर
काळा नाग’र बिसैला जिनावर
नित देखै जाग्यां पछै करसा
मंडयोड़ी लीकां’र खोज
बै जाणै, बिना छेडयां
कोनी मारै डंक जिनावर
हुवै इस्यो निमधो तो मिनख
जको पोखै बैर
मारै मिनख नै
लगा’र घात !