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नींद / कुमार विकल
Kavita Kosh से
मैं शहर के घंटाघर की बूढ़ी घड़ी से
पूछता हूँ
दादी माँ
मेरी नींद का क्या बना
तुम उसे वक़्त की गोद में सुरक्षित
क्यों नहीं रख सकीं
यदि अब भी कोई लोरी तुम्हारे पास है
तो मुझे थोड़ी देर के लिए सुला दो
मैं अपने मौहल्ले के चौकीदार से
पूछता हूँ ।