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नीलामघर / नरेन्द्र कुमार

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रुकनपुरा से शुरू होते
फ़्लाईओवर के ऊपर
फर्राटे मारती गाड़ियों में नहीं
ठीक उसके नीचे
जहाँ अंबेडकर पथ आ मिलता है
बिल्कुल वहीं

भोर होते ही एक भीड़
उमड़ती है
ये मॉर्निंगवॉकर लोग नहीं हैं
न ही नक़ली ठहाके लगाते लोग

ख़ालीपेट !
पेट के लिए जमा
खुसुर-पुसुर किए जाते
ढूँढ़ती हुई निगाह
रुकने वालों पर डालते
दौड़ पड़ते हैं
बोली लगने लगती है
चेहरों की
नहीं...नहीं,
ख़ाली पेट की

कुछ चेहरे वापस लौट रहे हैं
बिना नीलाम हुए
जिसका मलाल
उन पर साफ़ दिखता है

ऐसा नहीं है कि
इन चेहरों की ज़रूरत
शहर को नहीं है
पर, वह अपने सपनों की ईंट
थोड़ी और सस्ती जोड़ना चाहता है
और ये चेहरे...
अपने भूख की क़ीमत पूरी चाहते हैं

आप अंदाज़ा लगाइए
इस मुक़ाबले में कौन जीतेगा?
बिल्कुल सही,
शहर और उसके सपने।
जबतक कि भूख अपनी सीमा-रेखा
न पार कर जाए
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रुकनपुरा, पटना में बेली रोड के किनारे एक मुहल्ला है