न्यायालय / लीलाधर मंडलोई
एक जहाज ऐन सामने डूब रहा था
एक रेल पटरियों से बाहर थी
एक स्कूल बम के निशाने पर था
एक इबादतगाह दुश्मनों का अड्डा थी
एक व्यापारिक घराना आतंकवादियों की मदद से चर्चा में था
एक वकील अभिव्यक्ति के लिए नई लड़ाई में था
एक आदमी बेवजह सलाखों के पीछे थ
एक चिंतक सरकार का गुन बखान रहा था
अब ऐसे हालात में लोग असमंजस में थे
ऐंजेसी अखबारों के लिए विज्ञप्तियां ढो रही थीं
चर्चाओं में सच को झूठ करने की होड़ थी
सीमा पार के उपद्रवों की नई व्याख्या हो रही थी
कुछ जरखरीद थे बेतरह चिंता में सूखते
कि सच को कैसे कठघरे में खड़ा करें
जो कुछ परोसा जा रहा था सूचना केन्द्रों से
चीजें वैसे ही घटने लगीं सब की उलट
अब इसे ठगी या बेईमानी कहना तो ठीक नहीं
आखिर कहीं तो विश्वास लाजिमी है
यह और बात है कि हमारी आस्था के न्यायालय
खोले गए हैं अंटार्टिका में
और वहां रात अभी
ऋतु चक्र का दरवाजा खोल रही है.