पकड़मपाटी / विष्णु नागर
जब आप पैसे के पीछे भगते हैं और भागते चले जाते हैं तो एक दिन ऐसा आता है कि पैसा खुद आपके पीछे भागना शुरू कर देता है और तब आप इसलिए भाग रहे होते हैं कि पैसा आपके पीछे भाग रहा है हालांकि उसे आपको पकड़ने की कोई जल्दी नहीं होती, वह तो बस इतना चाहता है कि आप लगातार भागते रहें और आप इस भ्रम में रहें कि वह आपको पकड़ना चाहता है और आप पकड़ में नहीं आ रहे हैं. वह अपनी उदारता दिखाने के लिए इतना तक करता है कि आप दौड़ते-दौड़ते गिर पड़ते हैं तो वह आपको उठने का मौका देता है ताकि आप फिर से भाग सकें और वह आपको पकड़ने के लिए आपके पीछे भाग सके.
वह आपकी मृत्यु तक आपका पीछा नहीं छोड़ता और यह तो मरने पर ही कोई बता सकता है कि-जो कि वह नहीं बताता-कि उसके बाद भी वह पीछा छोड़ता है या नहीं लेकिन तत्वदर्शी बताते हैं कि पैसा इतना क्रूर होता है कि वह मरे हुए को भी नहीं छोड़ता. मरा हुआ भी उसके डर से अनंतकाल तक भागता रहता है. वह इतना डर जाता है कि दुबारा मरना चाहता है लेकिन एक बार मरने के बाद दुबारा मृत्यु कहां?
दौड़ते दौड़ते यह हाल हो जाता है कि मरने वाले को यह याद भी नहीं रहता कि वह क्यों और किसके डर से भाग रहा है मगर वह भागता चला जाता है जाने किन-किन नक्षत्रों के पार बिना उनको देखे, बिना उनको जाने. वह सांस तक नहीं ले पाता, पसीना तक पोंछ नहीं पाता. इस तरह होते-होते एक दिन वह उल्कापिंड की तरह पृथ्वी पर गिर पड़ता है और तब जाकर उसे मुक्ति मिलती है क्योंकि पैसे की पकड़ से मुक्ति की भी पूरे ब्रह्माण्ड में एक ही जगह है-पृथ्वी.