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पखीअड़ा / अर्जुन ‘शाद’

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औखी विछोड़े जी रात पखीअड़ा
औखी विछोड़े जी रात!

1.
कारा कारा बादल गरजनि
दर्द वंदनि जूं दिलिड़यूं तड़फनि
ॻोढनि जी बरसात, पखीअड़ा
औखी विछोड़े जी रात!

2.
सिक जा सॾिड़ा साजन सुणंदो
नेठि कंदो हू तोखे पंहिजो
वंेदी हटी फ़िकरात, पखीअड़ा
औखी विछोड़े जी रात!

3.
पिञरे जा ही पैद भञी तूं
साजन सां मिलु ”शाद“ वञी तूं
ॿी सभु जूठी बात, पखीअड़ा
औखी विछोड़े जी रात!

(1940)