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पत्तो / श्याम महर्षि
Kavita Kosh से
म्हैं नीं डरपीजूं
काळा-पीळा बादळां सूं
नीं लागै म्हनैं डर
बिरखा अर ओळा रै वेग रो,
सियाळै री डांफर
अर सीत दावौ
म्हनैं डरा नीं सक्यो
हालतो-डोलतो
मायतां रै साथै
रैवतो आयो हूं म्हैं,
काळै उन्हाळै री
लूवां रा थपैड़ा
पाणी री तिस
अर आंधी रै
धूळिया-धपूळिया सूं
निरभय हुय‘र
झूमतो रैयो हूं
भायां रै साथै म्हैं
बंसत मांय कंवळी कूंपळा रै
पगल्यां सूं
मरूभौम री जिन्दगी मांय सांचरै
नूंवै जीवण रो उजास
म्हैं मुगत हुवणै खातर
पीळा गाबा मांय
सदां सदां रै खातर
धरती री गोद मांय
जावणै नैं लम्फूं।