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पन्द्रह अगस्त / शैलेन्द्र
Kavita Kosh से
जय जय भारतवर्ष प्रणाम !
युग-युग के आदर्श प्रणाम !
शत शत बन्धन टूटे आज
बैरी के प्रभु रूठे आज
अन्धकार है भाग रहा
जाग रहा है तरुण विहान !
जय जाग्रत भारत सन्तान
जय उन्नत जनता सज्ञान
जय मज़दूर, जयति किसान !
वीर शहीदो ! तुम्हें प्रणाम !
धूल भरी इन राहों पर
पीड़ित जन की आहों पर
किए जिन्होंने अर्पित प्राण
वीर शहीदो ! तुम्हें प्रणाम !
जब तक जीवन मुक्त न हो
क्रन्दन-बन्धन मुक्त न हो
जब तक दुनिया बदल न जाए
सुखी शान्त सँयुक्त न हो —
देशभक्त मतवालों के,
हम सब हिम्मतवालों के,
आगे बढ़ते चलें क़दम,
पर्वत चढ़ते चलें क़दम !
1947 में रचित