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परमाद / कन्हैया लाल सेठिया

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छयाली
लेग्यो
ल्याली,
केनी पड़यो ठा
डाकी कणां
आयो‘र गयो
भूलग्यो
बांधणो
एवड़ रै टोकरियो,
आसी फेर
लागग्यो मूंडै
लोही
पण कठै जावै
छोड‘र
लीली छिम रोही ?
कोनी टलै
कदेई
काल री घात
पण
जको सोचै
आगूंछ बात
राखै बो
हर खिण
याद,
जीव रो
बैरी
जीव रो परमाद !