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पैरों में/ सजीव सारथी

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परछाईयों का सफर है जिंदगी,
उगते और ढलते सूरज के इशारों पर,
घटती और फैलती परछाईयाँ,
खेलती अंधेरों और उजालों से आँख मिचोलियाँ,
सुख दुःख को जिंदगी से जोड़ती,
परछाईयाँ....

पैरों में पड़ी जंजीर सी,
कभी कभी मैं सोचता हूँ,
मेरे तलवों तले से निकलता,
ये साया,
मेरा है भी या नहीं,
या फिर मेरे जैसा कोई और है,
जिसने मेरे पैरों में,
सफर बाँध रखा है....