भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पोखरण 1998-2 / लाल्टू
Kavita Kosh से
गर्म हवाओं में उठती बैठती वह
कीड़े चुगती है
बच्चे उसका गंध पाते ही
लाल लाल मुँह खोले चीं चीं चिल्लाते हैं
अपनी चोंच नन्हीं चोंचों के बीच
डाल-डाल वह खिलाती है उन्हें
चोंच-चोंच उनके थूक में बहती
अखिल ब्रह्माण्ड की गतिकी
आश्वस्त हूँ कि बच्चों को
उनकी माँ की गंध घेरे हुए है
जा अटल बिहारी जा
तू बम बम खेल
मुझे मेरे देश की मैना और
उसके बच्चों से प्यार करना है