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प्रकलन / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
शब्द इतिहास की
भीड़, गमक, मूर्च्छना में
प्रसरित होते हैं
जंगल, नदी, पहाड़, परिवेश और संस्कृति को
रोमांच होता है
ठूँठ और वीरान का
एक नन्ही दूब
एक सदी-हवा मुस्कुराकर
सूरज को टेस करती है