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प्रतीक्षा / महेश चंद्र पुनेठा
Kavita Kosh से
जड़ नहीं
मृत नहीं
ठूँठ नहीं हैं ये
जाड़ों के पत्र-विहीन वृक्ष-से हैं ये
बसन्ती हवा की
प्रतीक्षा भर है इन्हें
फिर देखो
किस उत्साह से लद-फद जाते हैं ये
देखते ही देखते बदल जाएगा सारा संसार