भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्राण कोकिल / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता का एक अंश ही उपलब्ध है । शेषांश आपके पास हो तो कृपया जोड़ दें या कविता कोश टीम को भेज दें
 
ऐ मेरे प्राणों की कोकिल
कूको ! कूको! कूको
पुलकित कर दो सारे जग को
इस मधुवन के प्रिय पग-पग को
कंपित स्वर से आज लुभा दो
इस मधुवन के सरस विहग को
रसमाती पुलकित हो कोकिल
ऐ री कुछ तो बोलो
ऐ मेरे अन्तर की कोकिल
बोलो! बोलो! बोलो !