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प्रेम कविताएँ / सपना भट्ट

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तेरी ज़िद के ठंडे अलाव पर
जल तो रही हूँ।
राख नहीं, कंदील बनूँगी।

तेरे उलाहने पहनूँगी जिस्म पर
नील की तरह।
रूह पर बोहतान नहीं उजाले बरतूँगी।

तेरी बैरन चुप को उस
पुराने पीपल से बाँध रखूँगी
जिस पर तुझे एक जनम से आँचरियों का खटका है।

तू आवाज़ नहीं देता न, न दे
मैं तेरा लहज़ा ओढ़ कर
खुद को पुकारूँगी तेरे ही नाम से।
तेरे स्वर में खुद से लाड़ करूँगी।

तुझसे नहीं खुद ही से कहूँगी
कि मुँह न मोड़, दुःख न दे, सता मत।
तुझसे नहीं,
खुद से तेरी शिकायतें करूँगी।

भागीरथी में बहा दूँगी
सब तिरस्कार और समझाइशें।

तेरे दिए दुःखों के अंगार पर पग धरूँगी
जलूँगी नहीं बुरांश-सी दहकूँगी।

ईश्वर तो मेरी तरह बेबस नहीं
उससे थोड़ी-सी अपनी सिफारिश करुँगी
डरूँगी नहीं।

अपने ही भीतर लौटूँगी बार-बार
तुझे पा लेने को।
तुझे अंततः ख़ुद में ढूँढ लूँगी।
मरूँगी नहीं।

सुन लाटे!
और तो कुछ भी मेरे वश में नहीं
मगर वादा रहा
मैं तुझ पर दुनिया की सबसे सुंदर
प्रेम कविताएँ लिखूँगी।