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फ़ासले / परवीन शाकिर

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पहले ख़त रोज़ लिखा करते थे
दूसरे तीसरे तुम फ़ोन भी कर लेते थे
और अब ये कि तुम्हारी ख़बरें
सिर्फ़ अख़बार से मिल पाती हैं