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फागुन आया / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
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फागुन आया फागुन आया
नव रस की पिचकारी लाया
धरती और अम्बर में एक नया रंग है
फागुन की मस्ती का अपना ही ढंग है
दूर-दूर खेतों में सरसों है फूली
फूलों की डाली भी मस्ती में झूली
धरती से फूट पड़ा स्रोत मन भाया
बाँसुरी बजाता लो मुग्ध पवन आया
फूलों की पंखुरियाँ हौले से खोलता
भौंरों के प्राणों का तार तार डोलता
किसी नयी तूलिका ने चित्र हैं बनाया
रेखा और रंगों ने नया प्राण पाया
पत्रहीन शाखों पर सपने से पलते
नयी नयी कोपलों के दीपक से जलते
भली भांति शाखों को साज के सँवार के
खिले हुये जमुनई फूल कचनार के
आम्र मंजरी से अब अमराई महकी
पल्लवों की ओट किए कोयलिया कुहकी