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फिकिर / नवीन ठाकुर ‘संधि’
Kavita Kosh से
आग लागलै घरोॅ में,
फिकिर ढूकलै धरोॅ में।
है कत्तेॅ बड़ोॅ अनियाय?
लारो नै बाँस केना गाड़बोॅ खम्हा खूट्टी,
बच्चा फुसलाय छी नै होय छै छुट्टी.
चारोॅ नखाँ हवा बान्ही केॅ रहै छीं मुट्ठी,
घरनी रही-रही ठुनकोॅ मारै छै करकुट्ठी।
खपड़ा पक्का छोड़ी छारै छै खरोॅ सें,
जत्तेॅ छै घोर बाहर सब्भै पनियाय?
है कत्तेॅ बड़ोॅ अनियाय?
बड़का बेटा जहिया कहलकै बूढ़वा-बुढ़िया,
तहिया सें पुतौहें चमकाय छै हड़िया।
इज्जत केना केॅ हमरोॅ बचतै भैया,
भगमानें मरण देतोॅ हमरोॅ कहिया?
कुरीह-कुरीह जिनगी कटै छै एकक पहरेॅ में,
येहेॅ छेकै "संधि" युगोॅ रोॅ बेटा पुतौहू कनियाय?
है कत्तेॅ बड़ोॅ अनियाय?
आग लागलै घरोॅ में,
फिकिर ढूकलै धरोॅ में।
है कत्तेॅ बड़ोॅ अनियाय?