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फिसलन / राजीव रंजन
Kavita Kosh से
पैसों की चिकनी फिसलन भरी राहों पर
अच्छे-अच्छों को फिसलते देखा है।
अंगद से पाँव के दंभ को भी यहीं
मिट्टी सा बिखरते देखा है।
अचल पर्वत को भी इन्हीं
राहों पर हमने सरकते देखा है।