फौजी / संजय आचार्य वरुण
सात सलामां उण माता ने
जिण फौजी ने जायौ
एक षहीद री कथा सुणी तो
आँखा में पाणी आयौ।
घर में षादी ब्याव हुवौ चायै
नूवीं बीनणी आवै
घर रा रिष्ता राख किनारै
सीमा पर डट जावै।
फौजी भूलै भूख प्यास ने
मन में नहीं कोई इच्छा
ओ तन इण धरती देवूं
करूँ देष री रक्षा।
आगै बधतौ कदम बढ़ातौ
सिंह सरीखौ गाजै
दुष्मन अपणा ढोला पिटवा
भेळा कर कर भाजै।
राई जितरी धरती खातर
तन सूं लोई बैवावै
हाथां में हथगोळौ ले
दुष्मन खानी बध जावै।
दुष्मन री सजियोड़ी सेना
इक पळ में बिखरावै
षत्रु पीठ दिखावै भागै
मन ही मन घबरावै।
गोळ्यां सूं बींधीजै काया
माता री गोदी सूवै
आँख्यां ने मीचण सूं पैली
बेटौ मां ने कैवै।
तू माता म्हैं लाल हूँ थारौ
जलम जलम रो नातौ
नेच्चौ हुंवतौ, बेसी थारी
सेेवा म्हैं कर पातौ।
इतरौ कै अर आँख्यां मीची
काम देष रै आयौ
उण रै मन में थ्यावस हौ के
जलम सफळ बण पायौ।