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बउरल कचनार / मुनेश्वर ‘शमन’
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सिहकल बसन्ती बेआर बउरल कंच्चे कचनार।
सरकय चुनरी बारम्बार मचाबय बइरन धमार।
बस्ती के बाहर बसल फुलवनमा।।
विहँसल सतरंगा तऽ लुभा रहल मनमा।
कइलक तन सोलह सिंगार हिया में जागल रे प्यार।
ओहे फूलवनमा में महक उठल पोर-पोर।
बइरिया तोड़इते जहाँ बन्हलय नयन-डोर।
मोहय मन महुआ अनार खिंचय सदा बैरिय के डार।
पार फूलवनमा के नदिया के तेज धार।
भोरे-भोरे पनभरनी संगे जागय कछार।
सजना के गाँव नदी पार दिल लागय नदिये-किनार।
भौजिया के छेड़छाड़ भइया के रे टोक-टाक।
मानय ले चाहय कहाँ जी केकरो रोक-हाँक।
पहरा सरम के बेकार कि डेग पड़य देहरी के पार।