भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरसी फुहारें / रजनी मोरवाल
Kavita Kosh से
रूह तक बरसी फुहारें
बारिशों की आज ।
खिल उठी धरती गगन का
मिल रहा है प्यार,
शाख पर पाया गुलों ने
प्रीति का संसार,
मिट रही है दूरियाँ
लो ख़्वाहिशों की आज ।
भीग कर आसक्ति से
यौवन हुआ मदहोश,
सब्र ने पैग़ाम भेजा
उम्र को ख़ामोश,
आ रही ख़ुशबू फिज़ां में
साज़िशों की आज ।
लड़कियों ने खूब ओढ़ा
तितलियों-सा रंग,
प्रश्न चूनर ने किया यह
क्या रचा है ढंग,
महफ़िलें सजने लगी
फिर कहकशों की आज ।